छोटे मियां सुबहान अल्लाह..!

इंसान उम्र के एक छोटे से सफर में बोलना ज़रूर सीख जाता है… लेकिन कब, कहां, क्या, कैसे बोलना है, ये सीखने के लिए पूरी उम्र भी छोटी ही महसूस होती है…! इन्हीं हालात से इन दिनों छोटे मियां दो चार हैं…!
पिता की कमाई हुई शोहरत के रथ पर सवार इन महाशय को लगने लगा है कि कहीं भी, कभी भी, कुछ भी कहते जाएंगे, पिता की अच्छाइयों के तराज़ू में तोल लिए जाएंगे, बर्दाश्त कर लिए जाएंगे…! ऐन चुनाव, जब पार्टी जीत के दम से सराबोर थी…! सारा सूबा अपना, के उत्साह से लबरेज थी…! छोटे मियां की बुजुर्गियत इन शब्दों से टपक रही थी, कि विपक्ष को कमजोर न समझें, उसमें बहुत दमखम है, वह बराबरी की टक्कर देने वाले हैं, वह हमें धराशाई भी कर सकते हैं…! कार्यकर्ताओं का मनोबल गिराने और बैठे बिठाए विपक्षियों को खुशमखुश करने के बाद भी छोटे मियां मानते रहे, उन्हें बोलने की तमीज आ गई है…!
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एक नाम, एक गारंटी, एकजाई मेहनत ने जीत की पताका फहराई…! अब पिता सेंट्रल की सुपर सिक्स में शामिल हैं…! बेटे साहब फिर बदमिजाज़ हुए जा रहे हैं…! कश्मीर से कन्याकुमारी तक डंका बजता है… दिल्ली का सिंहासन उनके पिता के आगे नतमस्तक हुआ जा रहा है… गिनेचुने नेताओं में शुमार वाले पिता के पुत्र हैं वह…!
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वह आगे हैं, वह बड़े हैं, वह सबके प्रिय हैं… इसमें शक की गुंजाइश नहीं है… लेकिन छोटे मुंह से सार्वजनिक मंच पर उभरे यह अल्फाज छोटे मियां को तो और छोटेपन की तरफ ले जा ही रहे हैं… साथ ही मेहनत से लोकप्रियता और सफलता का दामन थामने वाले पिताश्री को भी निचले पायदान पर ले जा रहे हैं..!वारिस के रूप में एक नई पारी की उम्मीदें उनसे की जा रही हैं, लेकिन इनका बड़बोलापन दिल्ली में बैठे बड़ों को नाराज़ भी कर सकता है और छोटे मियां की तेज़ उड़ती पतंग को धरा पर ला सकता है….!
पुछल्ला
ये कैसी सज्जनता…!
सियासत में सभ्यता, सज्जनता, सौहाद्र की कमी पुरातन है। अब इसमें फुहड़ता और व्यक्तिगत आक्षेप की भी बाढ़ है। देश के मुखिया के पारिवारिक जीवन को लेकर सार्वजनिक टिप्पणी का अधिकार किसी को नहीं होना चाहिए। उनके उलझे या टूटे रिश्तों पर तंज कसना तो कतई बर्दाश्त नहीं किया जाना चाहिए। एक थके, हारे, बिखरे चुनाव को जीतने की उमंग लिए कुछ भी बकबक किया जाना किस सज्जनता के साथ देखी जा सकती है।
संवाद सूत्र – खान अशु भोपाल चकरघिन्नी डॉट कॉम
Author: Admin
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