मप्र सियासत का इतिहास गवाह है, जब जब उनका मुंह खुला, एक नया विवाद ही टपक कर फिजाओं में बिखरा है…! वो बोलते रहे, ये फायदा लेते रहे…! बोलने की इंतहा यह कि उनपर एक ठप्पा ही लग गया, ये वो नहीं, जो दिखते हैं, जो दिखते हैं, वो तो बिल्कुल भी नहीं…!

खान अशु चकरघिन्नी दोबारा
पिछली बार की तर्ज पर इस बार भी बेशर्मी की शिकस्त अपनी झोली में डाले बैठे हैं…! पहले उस राजधानी से हार गले लगाई, जहां एक दशक तक सिंहासन संभालने की महारत उठाई थी…! अब मौका मिला तो उस राजघराने में भी खुद को मिटा बैठे, जहां कहते आए थे, हम हैं यहां के सरकार…!
हार से डर नहीं लगता साहब, बस कुर्सी छिन जाने का खोफ रहता है…! बहुत दिनों बाद जागे, जागते ही बोल उठे… सरकार दोगलाई कर रही… राम और कृष्ण की राह चलने के रास्ते बना रही है…! साहब चाहते हैं कि अगर राम और कृष्ण की तालीम दी जा सकती है तो मोहम्मद साहब, गुरु नानक और गौतम बुद्ध और प्रभु ईशु के सबक भी पढ़ाए जाने चाहिए…! कहना था, कह दिया, अलग दिखना था, दिख लिए… अब सरकार के खिलाफ वैमनस्यता भरे कई धड़े खड़े हों तो होते रहें…!
बात बेबात से मन भरा नहीं, फिर मन से गुबार छलका और अपनों को ताकीद कर बैठे…! उदाहरण उनका दिया, जिनको पार्टी का घोर विरोधी करार देते रहे हैं…! चच्चा की हिदायत है, सड़कों पर विपक्ष न बनें… उनकी तरह घर घर जाएं, लोगों के मन में घर बनाएं….! लेकिन साहब भूल गए, घर घर जाने वालों की एक सदी की मेहनत और तल्लीनता है, जिसने आज राजगद्दी से नाता जोड़ने के हालात बनाए हैं…! गलतियों से अपने हाथों रखी सत्तर बरस की जमावट को फिसला देने वाले किसी पराई थाली में नजर गढ़ाने की बजाए सब्र और संतोष का तानपुरा लेकर बैठें, यही उनके लिए हितकारी है….!
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पुछल्ला
यूंही कोई “शाह” नहीं हो जाता
नाम से सब कुछ नहीं होता। यह सूबे के एक वजीर इन दिनों साबित कर रहे हैं। कभी अपनी ही पार्टी के मुखिया की पत्नी को लेकर आपत्तिजनक अल्फाज इस्तेमाल कर बैठते हैं। अब अपनी ही पार्टी के एक मंत्री के विभाग में दखल देते नजर आ रहे हैं। जिद है कि राष्ट्रगान का सम्मान हो। कोई समझा नहीं पा रहा है कि किसी कौम खास के लिए असम्मान उनके मन समाया हुआ है शायद। बाकी तो देश, देश गान, देश ध्वज के लिए असम्मान की भावना न तो कहीं दिखाई दी और न कभी ऐसे हालात बनने की कल्पना की जा सकती है।
Author: Admin
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