मोड़ीलिपि प्रशिक्षण कार्यशाला का समापन

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मोड़ीलिपि प्रशिक्षण कार्यशाला का समापन

भोपाल। संचालनालय पुरातत्व, अभिलेखागार एंव संग्रहालय, के अभिलेखागार प्रभाग द्वारा लोक माता देवी अहिल्याबाई होलकर के त्रिशताब्दी जयंती के स्वर्णिम अवसर पर आरसीवीपी नरोन्हा प्रशासन एवं प्रबंधकीय अकादमी भोपाल में 2 से 13 जून तक मोड़ीलिपि प्रशिक्षण में पुर्नस्थापन, संरक्षण, संवर्धन के लिए प्रशिक्षण दिलाये जाने हेतु निर्णय लिया गया। अभिलेखागार प्रभाग में होलकर, सिंधिया, मध्यभारत के अनेक अभिलेख मोड़ीलिपि में संरक्षित है इनकी स्वर एंव व्यजंन वर्णमाला को शोद्यार्थियों को लिखने एवं पढने की शैली से अवगत किया जा सके, इसको दृष्टिगत रखते हुए यह कार्यशाला को आयोजित किया गया। यह लिपि सर्वप्रथम देवगिरी जो अब दौलताबाद के नाम से जानी जाती है। महाराष्ट्र के जिले औरांगाबाद में स्थित ऐतिहासक किले व शहर है, यह यादव वंश के शासकों की राजधानी था। हिमाडपंत ने उनके शासन काल में मोडी लिपि को वर्ष 1260 से 1309 ई0 के मध्य विकसित किया था। 17वीं सदी में महाराष्ट्र के शिवजी महाराज के समय में विकसीत कि गई, जो भारतवर्ष में मराठा रियासतों में निर्वाद रूप से चलती रही है। जो आज अभिलेखागारों में लिखित सक्ष्यों के रूप में उपलब्ध है। जिन्हें वास्तविक वाचन, लेखन साक्ष्यों को प्रकट करने की दृष्टि से यह प्रशिक्षण कार्यशाला के दौरान प्रशिक्षणार्थियों ने वाद संवाद में जो अपनी विचार व्यक्त किये गये वह इस प्रकार है:-

 

कु. खुशनुरः- लुप्त होती यह लिपि मराठा शासको द्वारा उपयोग की जाती थी।

 

कु. अंकिताः- रिकार्ड को बिना रूके लिखे जाने की शैली को पढने की रही है। जो रोचक है।

 

कु. उजमाः- यह लिपि मराठी तक ही सीमित नहीं है।

 

भावेशः- गुप्त संदेश बहुत रोचक और महत्वपूर्ण है।

 

कु. लक्ष्मी चौहानः- इसमें होलकर एवं मराठा के पत्र व्यवहार का पता चलता है, और आने वाली पीढी के लिए संजोकर रखा जाये।

 

दीलिप डावरेः- इस लिपि में विभिन्न रियासतों की भाषाओं का सम्मिश्रण देखने को मिलता हैं। यह मोडीलिपि मराठी भाषा की प्रचलित लिपि रही है।

 

आयुक्त के निर्देशन में महाराष्ट्र मुम्बई स्थित अभिलेखागार से आये प्रशिक्षक यथा अमोल महाले एवं लक्ष्मण मिसे तथा सैय्यद नईमुद्दीन, भाषा विशेषज्ञ द्वारा दिये गये प्रशिक्षण में लगातार कार्यशालाओं के माध्यम से समय-समय पर और प्रशिक्षण दिया गया एवं मोडीलिपि की आवश्यकता पर जोर डाला गया। आयोजित की गई कार्यशाला के समापन अवसर पर आर.सी.वी.पी. नरोन्हा प्रशासन एवं प्रबंधकीय अकादमी की प्रशिक्षण संचालक निधि साकल्ले एवं उपसंचालक अभिलेखागार, निलेश लोखण्डे द्वारा प्रमाण-पत्र वितरित किये गये। सम्पूर्ण कार्य, प्रशिक्षणार्थियों एवं प्रशिक्षकों का आभार पुरालेख अधिकारी पदम सिंह मीणा द्वारा किया गया।

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