फर्जी हिबानामा कर दिया शत्रु संपत्ति का सौदा, तोड़ने के हो चुके हैं आदेश

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फर्जी हिबानामा कर दिया शत्रु संपत्ति का सौदा, तोड़ने के हो चुके हैं आदेश

 

खान आशु भोपाल। राजधानी भोपाल की जिस शत्रु संपत्ति का बरसों से अदालती विवाद चल रहा है, उस पर मकान भी बन गया और इस निर्माण के साथ कई फर्जीवाड़े भी जुड़ गए हैं। जिस संपत्ति से इसके फर्जी हिबानामा के हालात जुड़े हुए हैं, इसके नक्शे के नकलीपन और नियमविरुद्ध हस्तांतरण के मामले भी जुड़ गए हैं। सरकारी विभागों की साठगांठ और भ्रष्टाचार ने इस फर्जीवाड़े पर पर्दे डाल दिए हैं।

मामला राजधानी के वीआईपी स्थित खसरा नंबर 78 का है। शत्रु संपत्ति का हिस्सा इस जमीन को लेकर कई अदालती मामले प्रचलित हैं। बावजूद तहसीलदार ने यहां के एक ऐसे मकान का हस्तांतरण कर दिया है, जो पहले ही कई विवादों में था। इस नियम विरुद्ध हस्तांतरण में बड़े भ्रष्टाचार की बात कही जाती है।

 

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नक्शा बना हवा हवाई

वर्ष 1984 में निर्मित इस भवन के लिए भवन अनुज्ञा के लिए जो नक्शा लगाया गया है, वह कागजी है। खानापूर्ति के नाम पर नक्शा प्रदर्शित किया जरूर गया था, लेकिन बाद में नगर निगम के रिकॉर्ड से इसे गायब कर दिया गया है। नगर निगम के रिकॉर्ड में भवन अनुज्ञा शाखा में अब कोई नक्शा मौजूद नहीं है।

 

जिसके नाम नहीं, उसने कर दी हिबा

खसरा नंबर 78 की यह भूमि इनाम उल्लाह खान ने हिबा की है, जबकि यह जमीन इनाम के नाम पर है ही नहीं। जब जमीन किसी के नाम पर अंकित ही नहीं है तो वह व्यक्ति किसी को तोहफे में वह जमीन कैसे दे सकता है। एसडीएम कोर्ट में चल रहे विवाद में इस बात पर आपत्ति भी दर्ज की गई है।

 

जितने केस, उतनी तरह के डॉक्यूमेंट

सूत्रों का कहना है कि अलग अलग अदालतों में इस जमीन के विवाद को लेकर कई मामले प्रचलन में हैं। बताया जाता है कि अलग अलग अदालत में एक ही संपत्ति से संबंधित अलग अलग दस्तावेज प्रस्तुत किए गए हैं। जो इस मकान के फर्जीवाड़े की दास्तां बयान करते हैं।

 

और कर दिया किसी और ने ही सौदा

शत्रु संपत्ति में शामिल खसरा नंबर 78 की इस जमीन पर बनाया गया है नजारा विला नामक आलीशान भवन। कागजों पर इसका मालिकी हक फराज आजम के नाम पर दर्शाया गया है। इस नाते वे जमीन या इस घर के बेचने या इस्तेमाल के अधिकारी हैं। लेकिन बदनीयती के एक सौदे में इस भवन का विक्रेता जरीना बसीर को बताया गया है। जबकि क्रेता उनके ही बेटे सौलत बसीर को दर्शाया गया है।

 

हो चुके टूटने के आदेश

वर्ष 2011 और 2013 में इस भवन के फर्जीवाड़े को लेकर अदालती मामले चले हैं। इस दौरान अदालत ने खसरा नंबर 78 की जमीन के इस निर्माण को अवैध माना था। अदालत ने इसे तोड़ने के आदेश भी पारित किए हैं। लेकिन अवैध निर्माण अब भी बरकरार है और अपने फर्जीवाड़े और सरकारी सिस्टम में घुले भ्रष्टाचार की कहानी कह रहा है।

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