✍️खान आशु भोपाल
तीसरी पंक्ति से नाम पुकारकर किसी के सिर मुकुट सजा दिए जाने वाला प्रदेश…! ये अजब भी है, गजब भी है, सरल भी है…! इसीलिए बीस बरस से सत्ता पर काबिज पार्टी अपने प्रदेश अध्यक्ष को चुनने से भी चौंका देती है…! कोई दरी, जाजम उठाने वाला और चुनाव प्रचार के दौर में गाड़ी को धक्का लगाने वाला प्रदेश का अध्यक्ष चुन लिया जाता है, वह भी बिना किसी विरोध के…! मुखालिफ पार्टी को इससे भी सबक लेना चाहिए…! उनके वहां किसी बात का विरोध का भी विरोध करने की परंपरा पसरी है…! कहा जाता है कि इसीलिए पांच टर्म से विधानसभा के गलियारे में ही धक्के खाते नज़र आ रहे हैं…!
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इनके आने में कई संदेश छिपे हैं… तो उनके जाने के भी कई मतलब हैं…! कुछ खुश हैं और उसे जाहिर कर रहे हैं… कई बेचैन और बेबस हैं, लेकिन रंज भी नहीं मना पा रहे हैं…!
उनके जाने और इनके आने के बीच कई अरमानों के ढहने के भी किस्से दबे हैं…! लेकिन आलाकमान के आगे किसकी चली है… उनको न आना था, न आ पाए…! इनके अरमान मन में ही रह जाना था, रह गए…!
पिछले पहले से बने बनाए थे, चुनाव जीतकर सरकार लाने का दंभ रखते थे… नवागत पर यहां से लेकर वहां तक के अहसानों का पहाड़ है… कार्यकर्ताओं को सहेजें या न सहेजें चलेगा लेकिन नेताओं को सहेजना उनको प्राथमिकता रखनी होगी…!
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*पुछल्ला*
संपत्तिया का यह जवाब उफ्फ
कमीशनखोरी। हजारों करोड़ रुपए की कमीशनखोरी। मुखिया ने अपने सिर जिम्मेदारी लेकर मामला रफा दफा कर दिया। बदले में कुछ अफसरों को बलि भी चढ़ा दिया। मोहतरमा को ऐसे ही बेदाग रखा, जैसे इनकी बिरादरी के एक और मंत्री को बचा ले गए थे। इन सबका मीडिया जवाब यह कि मैं तो कुछ नहीं जानूं, जो कुछ जानें सब साहब ही जानें, कुछ हजम नहीं हो रहा है।
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01/जुलाई/2025

Author: Admin
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