जन प्रतिनिधि या कम प्रतिनिधि…!

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जन प्रतिनिधि या कम प्रतिनिधि…!

😇चकरघिन्नी. कॉम😇

✍️खान आशु

भिंड में साहब को गुस्सा आ गया…! बात खाद संकट की थी…! लोग जमा किए गए थे…! परेशान लोगों के बहाने खुद का वजन दिखाना था…! चाहे अनुसार लोग तो नहीं आए, गुस्सा जरूर आ गया…! वो इन्हें चोर कहें, ये उन्हें ऐसा ही समझते रहें…! तनातनी बढ़ गई…! कहते हैं एक लाठी से सभी बकरियां हकालने के हालात बन गए…! आव देखा न ताव, सीधे हाथ ही उठा लिया, एक नहीं, दो दो बार…! साथ लाए गए लोग चिल्लाते रहे, ये चोर है, वह चोर है…!

साहब को गुस्सा तो परेशानी पर आया, लेकिन एक नया उदाहरण सेट कर दिया…! लोग वही करते हैं, जो उनका आदर्श सिखाता है…! आज सुरक्षाकर्मियों की मौजूदगी ने हाथ उठने तक रोक लिया, हो सकता है कल वे साथ मौजूद न हों और कोई सिरफिरा हाथ छोड़ दे..! तब क्या नजारा होगा…?

 

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किसी फिल्म में दिलीप कुमार ने कलेक्टर की भूमिका निभाते हुए विधायक बने विलेन से कहा था, मैं आज चाहूं तो नौकरी छोड़कर विधायक बन सकता हूं, तुम दस बार पद छोड़ोगे तो भी एक बार कलेक्टर नहीं बन पाओगे…!तकाजा तो यही कहता है कि सबको अपनी हद में रहना याद होना चाहिए…! फिर वह विधायक हो या कलेक्टर…!

 

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पुछल्ला

मछली…मगरमच्छ…मासूम

अनंतपुरा में नपती हुई। सोचा था मछली परिवार कुछ और नपेगा। मगरमच्छ पर भी कुछ असरात आएंगे। लेकिन कार्यवाही की दिशा बदल गई। सरकारी जमीनों के सौदेबाजों से ठगे लोग बलि चढ़ गए।

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