गुनाह उनका भी कम नहीं, सज़ा उनके लिए तय क्यों नहीं…?
😇चकरघिन्नी. कॉम😇
✍️खान आशु
नेता जी बड़े ताव में हैं.. इनके गुनाह गिनाते नहीं थक रहे… मौका मिला तो पिछले एक शख़्स को भी घसीट रहे हैं… पावन मौकों पर भी पतित कामों को गिनाने से नहीं चूक रहे…! भाववेश में यह भूल जाते हैं कि जिस मगरमच्छ ने मछलियों को पोषित होने में सहयोग किया, वह भी उनके साथ का ही है…! कर्म से भी, और धर्म से भी…! जब नेस्तनाबूद करने का हलक उठाते हैं, तो इस गुनहगार को क्यों भुला दिया जाता है…!
याद यह यह भी रखा जाना चाहिए कि मछली की गिरफ्त से न कौम गमजदा है न अफसोस में… क्योंकि ब्लैक मेलिंग से नशे तक, क्लब से लेकर मछली के ठेके तक में इनकी कोई भागीदारी नहीं थी..! किसी को क़ौम की तरफ ले जाने की बात इसलिए गले नहीं उतारी जा सकती है कि गुनाहगारों के खुद कौम के होने में संशय बना हुआ है…! वे अगर क़ौम की बताई राह पर होते तो यहां तक कतई नहीं पहुंचते, जहां पहुंच गए हैं…!
बात सज़ा की है, तो गुनाह- गुनाह बराबर तोले जाना चाहिए..! मेरा-पराया मानकर किसी को छोड़ा जाना भी गुनाह- ए-अज़ीम माना जाना चाहिए…!
सिर्फ बोलने के लिए बोलना आसान है…! तराज़ू के पलड़े पर अपने मेंढक तोलना मुश्किल…! बकौल फिल्म दीवार, श्री अमिताभ बच्चन का एक डायलॉग… जाओ पहले उस आदमी का साइन लाओ, जिसने मुझे इस बुराई के दलदल में धकेल दिया था… जाओ पहले उस आदमी का साइन लाओ, जिसने मेरे हाथ पर लिख चोर दिया था…!
बात फैसले की ही आ गई है तो चोरी करने वाला भी चोरी… चोरी के लिए उकसाने वाला भी चोर…! तो फिर किसी सज़ा में भेदभाव क्यों…?
पुछल्ला
दो हंसों का जोड़ा बिछड़ गया
कभी साथ था। कारोबार की बात थी। यहां से वहां तक हमकदम थे। दो हंसों के जोड़े की तरह साथ ही दाना चुगते थे। अब हालात बदल गए हैं। साथी बिछड़ गए हैं। एक पद पर पग जमवाने के इरादे भी छिटक गए हैं। साहब ने दूसरे साहब से नाता यहां तक तोड़ लिया है कि साथ दिखने में भी किसी आफत का खौफ है। लेकिन पिछले साल को कैसे झुठलाएं, यह समझ नहीं आ रहा।
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Author: Admin
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