एक बार जाकर, बार बार जाने को मन करता है वहां : हाजी वारिस
भोपाल। उस खानकाह का रूहानी नजारा ही कुछ अलग है। यहां जो शख्स एक बार जाता है, उसकी तमन्ना यहां बार बार जाने की होती है। यहां पिछले कई सालों से सालाना उर्स सिलसिला भी जारी है, जिसमें दुनियाभर के लोग इकट्ठा होकर दुनिया की खैर की दुआएं मांगते हैं।
उज्जैन निवासी हाजी वसीम फारूखी नक्शबंदी कहते हैं कि इस नूरानी महफिल में शामिल होने के लिए वे लवाजमे के साथ पहुंचे हैं। उनके साथ उनके कई मुरीद भी इस उर्स में शामिल होने के लिए अंबाला गए हैं। हाजी वसीम का कहना है कि इमाम ए रब्बानी अल सहनी मुकद्दीद रउअ की दास्तां बहुत लंबी और पुरानी है। कुरान शरीफ में की जाने वाली तब्दीलियों को लेकर वे बादशाह अकबर के साथ भी जंग करने के लिए राजी हो गए थे। हाजी वसीम कहते हैं कि उनके एक फूफीजाद भाई ने उन्हें इस सिलसिले से जोड़ा और उसके बाद वे यहीं के हो गए। अपने मुरीदीन की बड़ी संख्या और उनके बीच बिताए जाने वाले वक्त की व्यस्तता के बीच भी वह कुछ वक्त निकालते ही हैं और इस खानकाह की चौखट पर हाजरी देते हैं। हाजी वसीम फारूखी खास तौर से इस उर्स में शामिल होने के लिए खासतौर से अंबाला पहुंचे हैं। इस सफर के दौरान वे दिल्ली में हजरत निजामुद्दीन रउअ की जियारत भी करेंगे।
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Author: Admin
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